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8 मार्च 2024

 ले कंधों पर आकाश सर को उठा के चले हम विश्व की महिला  इक्कीसवीं सदी की ओर चलें हे गाणं 2000-2001 च्या आंतरराष्ट्रीय महिला परिषदेत बिजिंग येथे भारतीय चमू द्वारा सादर केलं गेलं होतं , स्त्री मुक्ति संघटनेच्या Jyoti Mhapsekar यांनी लिहीलेलं हे गीत.‌ यथावकाश त्याची शेवटची ओळ बदलून  ले कंधों पर आकाश सर को उठा के चले हम विश्व की महिला  प्रगती की ओर चलें असं पणं गायलं जाऊ लागलं.  8 मार्च 2023 आणि आजच्या दरम्यान च्या काळात मणिपूर घडलंय. सहाजिकच आता गाणं‌ बदलायची गरज आहे. चळवळीच्या गाण्यांचा बाज जितका आश्वासक असू शकतो तितकाच तो जळतं वास्तव दाखवणारा ही असतो.  ले कंधों पर आकाश सर को उठा के चले हम भारत की महिला  उन्नीसवीं सदी की ओर चलें गाण्याची अशी ओळ सुचवताना जो काही उद्वेग वाटतोय, तो लवकरात लवकर जावा, हीच इच्छा आहे. मणिपूर झालं आहे असं म्हणतेय त्यात सगळ्याच राज्यांमध्ये वाढलेले स्त्रीयांवरील अत्याचार तर आहेतच. एका विद्यापीठात बायकांनी कुटुंबातील सदस्यांची कशी पारंपरिक पद्धतीने काळजी घ्यावी याचे वर्ग सुरू झाल्याचं वाचलं, तो उद्वेग ही आहे. NSO च्या नव्याने प्रसिद्ध झालेल्या आकडेवारीनुसार भारतातील

मुक्ति की चाबी

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बदहाल रातों के लंबे सिलसिलों से गुजरने वाले एक खूबसूरत जहां में, परेशान थी आवाम। घर-द्वार के जवान, पढ़ें लिखे युवक-युवती को काम नहीं मिल रहा था। भटक रहें थे वह, दर-दर, काम की खोज में ।  कितनों ने तो आशा ही छोड़ दी है कि उन्हें उनके पढ़ाई-लिखाई की हैसियत का काम मिलेगा । वह बस जो भी मिला है उस काम पर टिके रहना चाहते हैं । कितनों को तो ऐसा आधा-अधूरा रोजगार भी नहीं मिला है और रोजगार पानें की कोई उम्मीद नहीं बचीं हैं । उस जहां में वैसे तो लगभग 10 लाख सरकारी नौकरी में पद खाली थें । सारे युवाओं की उम्मीद का एक मात्र अंतिम विकल्प था इन सरकारी नौकरी में रिक्त पदों पर भर्ती हेतु अधिसूचना जारी हो जाएगी । इस जहां के चुनावी गणतंत्र के समयानुसार सार्वत्रिक चुनाव की आघोषणा का माहौल बना हुआ था । जहां के नेताओं में कुछ ऐसे नेता थे, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखते।  ऐसे लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रोत्साहन देने वाले, जो नेता इतने समझदार थे, जो जानते थे की इन 10 लाख के करीब सरकारी रिक्त पदों पर युवा पीढ़ी के स्त्री-पुरुषों को नौकरी मिलने पर, केवल इन लोगों का समाधान नहीं होगा । हर परिवार को एक नया