मुक्ति की चाबी




बदहाल रातों के लंबे सिलसिलों से गुजरने वाले एक खूबसूरत जहां में, परेशान थी आवाम। घर-द्वार के जवान, पढ़ें लिखे युवक-युवती को काम नहीं मिल रहा था। भटक रहें थे वह, दर-दर, काम की खोज में । 

कितनों ने तो आशा ही छोड़ दी है कि उन्हें उनके पढ़ाई-लिखाई की हैसियत का काम मिलेगा । वह बस जो भी मिला है उस काम पर टिके रहना चाहते हैं । कितनों को तो ऐसा आधा-अधूरा रोजगार भी नहीं मिला है और रोजगार पानें की कोई उम्मीद नहीं बचीं हैं ।

उस जहां में वैसे तो लगभग 10 लाख सरकारी नौकरी में पद खाली थें । सारे युवाओं की उम्मीद का एक मात्र अंतिम विकल्प था इन सरकारी नौकरी में रिक्त पदों पर भर्ती हेतु अधिसूचना जारी हो जाएगी ।

इस जहां के चुनावी गणतंत्र के समयानुसार सार्वत्रिक चुनाव की आघोषणा का माहौल बना हुआ था । जहां के नेताओं में कुछ ऐसे नेता थे, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखते। 

ऐसे लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रोत्साहन देने वाले, जो नेता इतने समझदार थे, जो जानते थे की इन 10 लाख के करीब सरकारी रिक्त पदों पर युवा पीढ़ी के स्त्री-पुरुषों को नौकरी मिलने पर, केवल इन लोगों का समाधान नहीं होगा । हर परिवार को एक नया मौका मिलेगा, उम्मीदें कायम रखने का, उम्मीद भरे दिल-ओ-दिमाग से घर – मकान बनाने का, थोड़े पैसे बचानें की आदतें बनाकर धीरे धीरे निवेश योग्य पूंजी जोडने का, मौका मिलेगा। इन अवसरों से कितने अन्य लोगों के कारोबार में बढत मिलेगी, इन बातों की संभावना को कुछ चंद ही नेता समझते थे। 

आर्थिक विकास में रोजगार और मांग का महत्व समझने वाले ऐसे राजनैतिक नेताओं को अवाम ने भारी मतों से चुनाव में जिता दिया । उन नेताओं पर भरोसा दिखाया और अपना मत उन्हें दिया।

सियासी अखाड़े में बड़ी धूमधाम के बाद एक बदलाव आया। जनमत का हवाला देते, सत्ता पलट के बाद सरकारी  नौकरी के लाखों रिक्त पदों पर भर्ती कराईं गई। 

इतने लोगों को रोजगार मिलने के चंद महीनों में इस जहां में बदहाली का मौसम झडते हुए साफ दिखाई देने लगा। उस जहां में जिधर घर-घर में युवा – युवती बेकार, बेरोजगार होतें,  एक बेबसी का आलम झेल रहे थे, उन्हीं घरों में शांति से रहतें, हसीं – ठिठोली करते और और उम्मीद भरें लोग रहते हुए दिखने लगे।

इस जहां से बदहाली, बदफैली और बदहवासी की काली रात ढल चुकी थी और एक नई भोर में उठकर लोग आपस में सद्भावसे, मिल-जुलकर अपनी पसंद से तरक्कीनुमा काम में मश्गूल थे। अपने काम पर नाज़ कर रहे थे और अपने अपनों से प्यार निभा रहे थे। नये सपने, और खुशिहाली भरी जिंदगी की उम्मीद से जगे हुए लोग अपने बलबूते पर अपने सपनों को साकार करने की अपनी क्षमता पर विश्वास कर रहे थें।

इस तरह 10 लाख तक लोगों को रोजगार मिलने पर जहां का आर्थिक, सामाजिक और मानसिक माहौल बिल्कुल सुधरते हुए दिखाई दिया।

यह जो भी लिखा हुआ है, वह rational है, अतः fiction नहीं; यह सपना है मगर इसे लिखते वक्त में नींद में हूं नहीं; यह एक expectation है मगर यह भविष्यवाणी बिल्कुल हैं नहीं। हैं यह एक संभाव्यता की यह सच हो जाए।

लेकिन इस जहां के बदहाली मिटाने में स्थिती का पलड़ा पलटाने वाली कड़ी है लोगों द्वारा किए गए चुनाव की। जाहिर है, लोकतंत्र में कोई और कड़ी लोगों से ज्यादा मायने नहीं रख सकती। लोगों के चुनावी समझदारी में ही छुपी है मुक्ति की चाबी ।

- स्वाती मार्च 4, 2024

Comments

बहुत बढ़िया। आशा कराते हैं की सपना साकार हो।
Swati Vaidya said…
Thank you Uttam Jogdand, Sir.

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